रजोनिवृति-मासिकधर्म बंद होना
Rajonivrati-Masikdharam Band Hona
परिचय- स्त्रियों का पहला मासिकधर्म 13-14 साल की उम्र में शुरू होता है और 44-45 साल की उम्र में बंद हो जाता है। मासिकधर्म के बंद होने का समय जो होता है उसे ही रजोनिवृति कहा जाता है। स्त्रियों की रजोनिवृति का एक मतलब और होता है कि अब स्त्रियों का प्रजननकाल समाप्त हो गया है अर्थात वो अब बच्चे को जन्म नहीं दे सकती है। लक्षण- रजोनिवृति के लक्षणों में स्त्री का मासिकधर्म अनियमित हो जाता है जैसे कभी आता है और कभी नहीं आता, स्राव कभी कम मात्रा में आता है और कभी ज्यादा मात्रा में आता है, स्त्री का चेहरा और गर्दन पर बहुत ज्यादा पसीना आने के साथ लालपन सा छा जाता है, बहुत ज्यादा गर्मी महसूस होती है, रात को सोते समय नींद नहीं आती, बेचैनी सी रहती है, स्वभाव में चिड़चिड़ापन सा आ जाता है, संभोगक्रिया के समय बहुत ज्यादा परेशानी होती है। रजोनिवृति के रोग में विभिन्न औषधियों का प्रयोग- अगर रजोनिवृति काल में रोगी स्त्री को नींद नहीं आती, गले में गोला सा उठता हो तो रोगी स्त्री को सल्फर औषधि की 30 शक्ति या इग्नेशिया, सिमिसिफ्यूगा, बैलेरियाना औषधि की 3 शक्ति का सेवन करने से लाभ मिलता है। इसके अलावा रोगी स्त्री को सिपिया या कैल्केरिया औषधि की 30 शक्ति भी दी जा सकती है। रजोनिवृति के समय बहुत सी स्त्रियों को उन्माद रोग हो जाता है जिसमें वो हर समय उदास सी बैठी रहती है, हर समय रोती सी रहती है, अकेले रहना पसन्द करती है आदि लक्षणों में उसे हिप्पोमेनिस औषधि की 6 या 30 शक्ति देनी चाहिए। जानकारी- रजोनिवृति काल में रोगी स्त्री को ज्यादा आराम करना चाहिए और दिमाग से बेकार की चिंताओं आदि को दूर कर देना चाहिए। रोगी स्त्री को रोजाना व्यायाम और योगासन जैसी क्रियाएं करनी चाहिए इससे उसका शरीर चुस्त-दुरूस्त रहता है और वजन भी काबू में रहता है। रोगी स्त्री को बीच-बीच में अपने गर्भाशय के स्राव की जांच करवाते रहना चाहिए। रोगी स्त्री को अपने रोजाना करने वाले भोजन में विटामिन `ई´ आदि के भरपूर मात्रा में खाना चाहिए। सावधानी- रजोनिवृति काल में रोगी स्त्री को हल्के गर्म पानी से नहाना चाहिए। भोजन में रोगी स्त्री को जल्दी पचनेवाली चीजें खानी चाहिए। रोगी स्त्री को रोजाना समय पर सोना चाहिए, ज्यादा मेहनत वाले काम नहीं करने चाहिए। रजोनिवृति के रोग में विभिन्न औषधियों का प्रयोग-
1. लैकेसिस औषधि- रजोनिवृति में लैकेसिस औषधि की 6 शक्ति को सबसे लाभदायक माना जाता है। इसके अलावा रोगी स्त्री को बार-बार बुखार सा होना, शरीर में गर्मी सी महसूस होना, पसीना आना, सिर में जलन होना, रात को सोने के बाद रोग के लक्षणों को बढ़ना आदि में भी ये औषधि अच्छा असर करती है।
2. जैबोरैण्डी- अगर रोगी स्त्री को बहुत ज्यादा पसीना या लार निकलती है तो उसे जैबोरैण्डी औषधि की 2x मात्रा देने से लाभ मिलता है।
3. ग्लोनोइन- अगर सिर में बहुत तेज दर्द होता है तो रोगी स्त्री को ग्लोनोइन औषधि की 3 शक्ति देनी चाहिए।
4. चायना- रजोनिवृति काल में अगर रोगी स्त्री को माथे में बहुत तेज जलन महसूस होती है तो उसे चायना या फेरम औषधि की 6 शक्ति दी जा सकती है।
5. हाइड्रोसियानिक-एसिड- रजोनिवृति के समय अगर रोगी स्त्री को पाकस्थली में खालीपन सा महसूस होता है तो उसे हाइड्रोसियानिक-एसिड औषधि की 6 शक्ति देना लाभकारी रहता है।
6. कैलि-कार्ब- अगर रजोनिवृति काल के समय रोगी को पित्त ज्यादा हो, भूख नहीं लगती हो, बुखार सा महसूस हो आदि लक्षणों में रोगी स्त्री को कैलि-कार्ब औषधि की 6 शक्ति देनी चाहिए। अगर रजोनिवृति काल में रोगी स्त्री को नींद नहीं आती, गले में गोला सा उठता हो तो रोगी स्त्री को सल्फर औषधि की 30 शक्ति या इग्नेशिया, सिमिसिफ्यूगा, बैलेरियाना औषधि की 3 शक्ति का सेवन करने से लाभ मिलता है। इसके अलावा रोगी स्त्री को सिपिया या कैल्केरिया औषधि की 30 शक्ति भी दी जा सकती है। रजोनिवृति के समय बहुत सी स्त्रियों को उन्माद रोग हो जाता है जिसमें वो हर समय उदास सी बैठी रहती है, हर समय रोती सी रहती है, अकेले रहना पसन्द करती है आदि लक्षणों में उसे हिप्पोमेनिस औषधि की 6 या 30 शक्ति देनी चाहिए।
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