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Stri Rog "स्त्री-रोग" ka Homeopathy Upchar.

स्त्री-रोग 
Stri Rog



स्त्री-रोग   गर्भाशय- स्त्रियों के तलपेट में मूत्राशय और मलद्वार के बीच वाली जगह को गर्भाशय कहते हैं। गर्भाशय एक खाली थैली की तरह होता है जो अमरूद या नाशपती की तरह का होता है। स्त्री के इसी गर्भाशय के अन्दर भ्रूण लगभग 9-10 महीनों तक रहता है। गर्भाशय बड़ा भी हो सकता और छोटा भी हो सकता है। जब इस गर्भाशय के अन्दर भ्रूण बढ़ने लगता है तो उसी के साथ-साथ यह भी बढ़ता जाता है और उसके जन्म लेने के बाद यह वापिस सिकुड़कर अपने पहले के आकार में आ जाता है। गर्भाशय के ऊपर के भाग को `गर्भाशय मूल´ कहा जाता है। इसके नीचे का भाग पतला सा होता है और इसे `गर्भाशय ग्रीवा´ कहते हैं `गर्भाशय ग्रीवा´ में एक छेद होता है जिसे `गर्भाशय का मुख´ कहा जाता है। `गर्भाशय ग्रीवा´ के चारों ओर 3 इंच लंबी टेढ़ी सुरंग जुड़ी हुई है जिसे `योनि´ कहा जाता है। डिम्बकोष- स्त्री के गर्भाशय के दोनों तरफ लगभग 1 इंच लंबे बादाम की तरह के 2 यंत्र होते हैं जिनको `डिम्बकोष´ कहते हैं। एक डिम्बकोष में बहुत छोटे-छोटे से 10-20 `डिम्ब´ रहते हैं। डिम्ब-प्रणाली- गर्भाशय की जड़ में दोनों तरफ लगभग 3 इंच लंबे दो नल लगे हुए है जो फैलकर गर्भाशय के साथ डिम्बकोष को मिला देते हैं इनको कालल-नल या डिम्ब-प्रणाली कहते हैं। मासिकधर्म- कोई भी लड़की जब युवावस्था में कदम रखती है तो उस समय उसकी सारी इन्द्रियां मजबूत हो जाया करती है। उसी समय डिम्बकोष से डिम्ब निकलता है, उस समय डिम्बकोष, कालल-नल और गर्भाशय में खून पैदा होकर उससे स्राव निकलता है जिसे मासिकस्राव कहते हैं। स्त्रियों को 14 साल की उम्र से लेकर 44-45 साल की उम्र तक लगभग 28 दिनों में मासिकस्राव हुआ करता है। हमारे मुंह के अन्दर जिस तरह की लाल त्वचा है वैसी ही त्वचा हमारे गर्भाशय के अन्दर भी मौजूद होता है। लगभग 28 दिनों में गर्भाशय की इस त्वचा का रंग बदल जाता है। हर बार त्वचा का रंग बदलने के बाद लगभग 3 से 5 दिनों तक गर्भाशय से खून या स्राव निकलता है जिसे मासिकस्राव आना कहते हैं। मासिकस्राव के समय होमियोपैथिक औषधियों का सेवन नहीं करना चाहिए। स्त्री को मासिकस्राव आने के दौरान नहाना और पुरुष के साथ संभोग नहीं करना चाहिए। गर्भ-संचार- मानव विज्ञान के अनुसार शरीर में खून का कुछ ही भाग वीर्य में बदल जाता है। स्त्री का डिम्ब जब डिम्बकोष में रहता है, पुरुष का वीर्य भी उसी तरह अंडकोषों में रहता है। पुरुषों के वीर्य के अन्दर बहुत बारीक और लंबा एक तरह का कीड़ा रहा करता है जिसे शुक्र-कीट (शुक्राणु) कहते हैं। जब स्त्रियों का पका हुआ डिम्ब और पुरुषों का शुक्राणु आपस में मिलता है तब जाकर स्त्री को गर्भधारण होता है लेकिन कभी-कभी मासिकधर्म के 10-15 दिनों के बाद भी स्त्री को गर्भ ठहर जाता है। स्त्री और पुरुष के संभोगक्रिया के दौरान पुरुष के मुष्क से लिंग के रास्ते जो वीर्य निकलता है उस वीर्य का शुक्राणु औरतों के योनि के रास्ते से गर्भाशय के अन्दर घुसकर धीरे-धीरे काललनल में जाकर अगर डिम्बकोष के पके हुए डिम्ब से मिल जाता है तो स्त्री गर्भवती हो जाती है।


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