प्रसूताज्वर-सूतिका रोग
Puerperal fever
परिचय- गर्भवती स्त्री को ज्वर (बुखार) के अतिरिक्त सूजन, उल्टी, अतिसार, सिर दर्द आदि अनेक कष्ट हो सकते हैं। अत: उनकी चिकित्सा बहुत अधिक सावधानी से करनी चाहिए। लक्षण सूतिका ज्वर (गर्भवती स्त्री का बुखार) के लक्षणों में रोगी स्त्री को सिर में दर्द होने लगता है, नाड़ी तेज चलने लगती है, पेट में दर्द होता है, शरीर का तापमान बढ़ जाता है। इसके अलावा रोगी स्त्री को प्रसव के बाद आने वाला स्राव, पसीना और स्तनों से दूध निकलना बंद हो जाता है और रोगी स्त्री 7-8 दिनों में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाती है। कारण बच्चे को जन्म देने के बाद गर्भाशय में किसी तरह का रोग हो जाना, गर्भाशय में नारबेल का कुछ भाग रहने के कारण उसका सड़ जाना आदि कारण से यह रोग होता है। बच्चे को जन्म देने के 3-4 दिन के बाद सूतिका ज्वर (गर्भवती स्त्री का बुखार) होता है। यह बुखार शुरू में हल्का-हल्का होता है और फिर तेज हो जाता है।
आयुर्वेद से इलाज
1. कच्चा दूध: भूख के समय योनि में गर्भाशय के मुंह पर कच्चे दूध का फोया रखने से यदि मुंह से दूध की सुगंध आए तो समझना चाहिए कि स्त्री बांझ नहीं है।
2. जौ: एक गमले की मिट्टी में जौ के दाने दबाएं फिर स्त्री का सुबह का मूत्र इसमें डाले। यदि एक सप्ताह के लगभग दाने उग आएं तो समझना चाहिए कि स्त्री बांझ नहीं है।
घरेलू इलाज
1. एरण्ड: एरण्ड की जड़, गिलोय, मजीठ, लाल चन्दन, देवदारू तथा पद्याख का काढ़ा पिलाने से गर्भवती स्त्री का ज्वर (बुखार) दूर हो जाता है।
2. मुलहठी: मुलहठी, लाल चन्दन, खस की जड़, अनन्तमूल तथा कमल के पत्ते- पांचों औषधियों का काढ़ा बनाकर, ठंडा होने पर शहद तथा खांड मिलाकर पिलाने से गर्भिणी का ज्वर (बुखार) दूर हो जाता है।
होमेओपेथी से इलाज
1. हायोसायमस- अगर रोगी स्त्री में साधारण पागलपन या हंसने-खेलने जैसे लक्षण प्रकट होते हैं तो उसे हायोसायमस औषधि देनी चाहिए।
2. स्ट्रैमोनियम- रोगी स्त्री का बहुत तेज रोना, गुस्सा आना, दूसरों का काटने के लिए दौड़ना, अकेले या चुप ना बैठ पाना, अश्लील हरकते करना जैसे लक्षणों में स्ट्रैमोनियम औषधि की 3 शक्ति लेने से लाभ मिलता है।
3. कैनाबिस-इण्डिका- रोगी स्त्री का अकेले और अंधेरे में बैठे रहना, उच्च भावपूर्ण प्रलाप, रोगी स्त्री की शारीरिक मानसिक क्रिया का निस्तब्ध भाव जैसे लक्षणों में कैनाबिस-इण्डिका औषधि की 6 शक्ति देनी चाहिए। नेचरोपैथी से इलाज इस रोग को ठीक करने के लिए 15 से 30 मिनट के लिए पीड़ित स्त्री को प्रतिदिन 4 बार मेहनस्नान करना चाहिए। सूतिका रोग से पीड़ित स्त्री यदि अधिक कमजोर हो तो उसे मेहनस्नान ठंडे पानी से नहीं कराना चाहिए बल्कि थोड़ा गुनगुना पानी से करनी चाहिए। यदि सूतिका रोग से पीड़ित स्त्री की अवस्था साधारण है तो उसे प्रतिदिन 2 बार मेहनस्नान करनी चाहिए तथा इसके बाद अपने पेडू (नाभि से थोड़ा नीचे का भाग) पर गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए।
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