फेफड़ों में पानी भरना
Lung Water
जानकारी :
फेफड़े और फेफड़े को ढकने वाली झिल्ली के बीच जब किसी प्रकार का कोई द्रव जमा हो जाता है तो उस फेफड़ों में पानी भरना कहते हैं। फेफड़ों में पानी भरने से बुखार होता है, सांस लेने में परेशानी होती है जिसके कारण रोगी रुक-रुककर सांस लेता है। इस रोग से पीड़ित रोगी जब सांस लेता है तो उसकी छाती में दर्द होता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
हिन्दी फेफड़ों में पानी भर जाना
अंग्रेजी प्लूरिसी
अरबी उरस्तोय
गुजराती फेफनासा पानी भारुण
कन्नड़ उरस्तोय
मलयालम नेन्चिले निरकेट्टु
मराठी उरोस्तोय
उड़िया छातिरे पानी जिम्बका।
कारण :
फेफड़ों की सूजन अधिक ठंड़ लगने, ठंड़े खाद्य पदार्थों का अत्यधिक सेवन करने, बरसात में भींगने आदि कारणों से होता है। कम उम्र के बच्चे व किशोर इस रोग से अधिक पीड़ित होते हैं।
कुछ चिकित्सकों का कहना है कि जीवाणुओं के संक्रमण के कारण ही फेफड़ों में पानी भरता है। ठंड़े वातावरण में इस जीवाणु का संक्रमण अधिक होता है। छाती में चोट लगने के कारण भी यह रोग हो सकता है। क्षयरोग, खसरा, निमोनिया, रियूमेटिक बुखार और इंफ्लूएंजा आदि रोग के कारण भी यह रोग हो सकता है।
लक्षण :
फेफड़ों की सूजन में पसलियों के दर्द के साथ रोगी को खांसी आती है। इस रोग से ग्रस्त रोगी को सर्दी अधिक लगती है तथा शरीर में कंपन होता है। छाती में चुभनयुक्त दर्द होता है। लड़कियों में यह रोग होने पर उसके स्तन की घुण्डियों में बहुत तेज दर्द होता है। रोगी को श्वांस लेने में भी बहुत अधिक पीड़ा होती है।
फेफड़े में पानी भरने पर सांस लेते समय छाती में बेहद दर्द होता है जिससे रोगी छोटी-छोटी सांस लेने पर मजबूर हो जाता है। खांसी के साथ ज्यादा बलगम आता है और हल्का बुखार भी रहता है। रोगी को अधिक कमजोरी महसूस होती है। रोगी हर समय बैचेनी महसूस करता है और उठकर बैठने पर थोड़ा आराम मिलता है।
भोजन और परहेज :
फेफड़ों की सूजन में रोगी को ठंड़ी वातावरण से अलग रखना चाहिए और ठंड़े खाद्य पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए। इस रोग में खांसी अधिक आती है। इसलिए खांसी को नष्ट करने वाली औषधियों का सेवन करना चाहिए। रोगी को गेहूं, मूग की दाल, शालि चावल, बकरी का दूध, गाय का दूध आदि का सेवन करना चाहिए।
भारी आहार, दही, मछली, शीतल पेय आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
विभिन्न औषधियों से उपचार-
1. बालू : बालू (रेत) या नमक को किसी कपडे़ में बांधकर हल्का सा गर्म करके सीने पर सेंकने से फेफड़ों की सूजन में बहुत अधिक लाभ मिलता हैं और दर्द भी समाप्त हो जाता है।
2. अलसी : अलसी की पोटली को बनाकर सीने की सिंकाई करने से फेफड़ों की सूजन के दर्द में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
3. तुलसी : तुलसी के पत्तों का रस 1 चम्मच प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से सूजन में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
4. पुनर्नवा : पुनर्नवा की जड़ को थोड़ी सी सोंठ के साथ पीसकर सीने पर मालिश करने से सूजन व दर्द समाप्त हो जाता है।
5. लौंग : लौंग का चूर्ण बनाकर 1 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद व घी को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से खांसी और श्वांस सम्बन्धी पीड़ा दूर हो जाती है।
6. घी : घी में भुना हुआ हींग लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम की मात्रा में पानी मिलाकर पीने से फेफड़ों की सूजन में लाभ मिलता है।
7. खुरासानी कुटकी: वक्षावरण झिल्ली प्रदाह या फुफ्फुस पाक में तीव्र दर्द होता है। ऐसे बुखार में खुरासानी कुटकी की लगभग आधा ग्राम से लगभग 1 ग्राम की मात्रा में चूर्ण शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से फेफड़ो के दर्द व सूजन में लाभ मिलता है।
8. मजीठ : मजीठ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन 3 बार सेवन करने से फेफड़ों की सूजन और दर्द में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
9. कलमीशोरा : कलमीशोरा लगभग 2.40 ग्राम से 12.20 ग्राम पुनर्नवा, काली कुटकी, सोंठ आदि के काढ़े के साथ सुबह-शाम सेवन करने से प्लूरिसी में लाभ मिलता है।
10. गुग्गुल : गुग्गुल लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम मात्रा लेकर गुड़ के साथ प्रतिदिन 3-4 मात्राएं देने से फेफड़ों की सूजन व दर्द में काफी लाभ मिलता है।
11. धतूरा : फुफ्फुसावरण की सूजन में धतूरा के पत्तों का लेप फेफड़े के क्षेत्र पर छाती और पीठ पर या पत्तों के काढ़े से सेंक या सिद्ध तेल की मालिश पीड़ा और सूजन को दूर करती है।
12. नागदन्ती : नागदन्ती की जड़ की छाल 3 से 6 ग्राम की मात्रा को दालचीनी के साथ देने से वक्षावरण झिल्ली प्रदाह (प्लूरिसी) में बहुत लाभ मिलता है।
13. विशाला : विशाला (महाकाला) के फल का चूर्ण या जड़ की थोड़ी सी मात्रा में चिलम में रखकर धूम्रपान करने से लाभ मिलता है।
14. अगस्त : अगस्त की जड़ की छाल पान में या उसके रस में 10 से 20 ग्राम मात्रा को शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से कफ निकल जाता है, पसीना आने लगता है और बुखार कम होने लगता है।
15. पालक : पालक के रस के कुल्ला करने से फेफड़ों और गले की सूजन तथा खांसी में लाभ होता हैं।
16. पुनर्नवा : लगभग 140 से 280 मिलीलीटर पुनर्नवा की जड़ का रस दिन में 2 बार सेवन करने से फेफड़ों में पानी भरना दूर होता है।
17. त्रिफला : 1 ग्राम त्रिफला का चूर्ण, 1 ग्राम शिलाजीत को 70 से 140 मिलीलीटर गाय के मूत्र में मिलाकर दिन में 2 बार लेने से फेफड़ों में जमा पानी निकल जाता है और दर्द में आराम मिलता है।
18. अर्जुन : अर्जुन की जड़ व लकड़ी का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर 3 से 6 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में 2 बार लेने से फेफड़ों में पानी भरना ठीक होता है।
19. तुलसी : फेफड़ों की सूजन में तुलसी के ताजा पत्तों के रस आधा औंस (15 मिलीलीटर) से एक औंस (30 मिलीलीटर) धीरे-धीरे बढ़ाते हुए सुबह-शाम दिन में दो बार खाली पेट लेने से फेफड़ों की सूजन में शीघ्र ही आश्चर्यजनक रूप से लाभ मिलता है। इससे दो-तीन दिन बुखार नीचे उतरकर सामान्य हो जाता है और एक सप्ताह या अधिक से अधिक 10 दिनों में सूख जाता है।
0 Comments